क्षेमंकारी/खींवज माता : कुलदेवी सोलंकी क्षत्रिय वंश, सभी तरह के दुःख दर्द दूर करती हे यह चमत्कारी माता
सोलंकी क्षत्रिय वंश की कुलदेवी :
क्षेमंकारी देवी जिसे स्थानीय भाषाओं में क्षेमज, खीमज, खींवज आदि नामों से भी पुकारा व जाना जाता है। खींवज माता के कई जगह मंदिर बने हुये है।
इस देवी का प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर राजस्थान के भीनमाल कस्बे से लगभग तीन किलोमीटर भीनमाल खारा मार्ग पर स्थित एक डेढ़ सौ फुट ऊँची पहाड़ी की शीर्ष छोटी पर बना हुआ है। मंदिर तक पहुँचने हेतु पक्की सीढियाँ बनी हुई है। भीनमाल की इस देवी को आदि देवी के नाम से भी जाना जाता है।
भीनमाल के अलावा सोलंकी राजपूतो की कुलदेवी खींवज माता का प्रमुख मंदिर राजस्थान में नागौर से 63 कि. मी. तथा डीडवाना से 33 कि.मी. की दूरी पर कठौती गॉव में बना है ,
खींवज माता का मंदिर :
माता का मंदिर एक ऊँचे टीले पर अवस्थित है ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहा मंदिर था जो कालांतर में भूमिगत हो गया , वर्तमान मंदिर में माता की मूर्ति के स्थम्भ के रूप से मालुम चलता है कि यह मंदिर सन् 135 वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था , मंदिर में स्थम्भ उत्तकीर्ण माता की मूर्ति चतुर्भुज है।
माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं खडग है , तथा बायें हाथ में कमल एवं मुग्दर है , मूर्ति के पीछे पंचमुखी सर्प का छत्र है , तथा त्रिशूल है , देवी उपासना करने वाले भक्तों को दृढविश्वास है कि खीमज माता की उपासना करने से माता जल, अग्नि, जंगली जानवरों, शत्रु, भूत-प्रेत आदि से रक्षा करती है और इन कारणों से होने वाले भय का निवारण करती है।
इसी तरह के शुभ फल देने के चलते भक्तगण देवी माँ को शंभुकरी भी कहते है। दुर्गा सप्तशती के एक श्लोक अनुसार-“पन्थानाम सुपथारू रक्षेन्मार्ग श्रेमकरी” अर्थात् मार्गों की रक्षा कर पथ को सुपथ बनाने वाली देवी क्षेमकरी देवी दुर्गा का ही अवतार है।
क्षेंमकरी माता का एक मंदिर इंद्रगढ ( कोटा – बूंदी ) स्टेशन से 5 मील की दूरी पर भी बना है , यहा पर माता का विशाल मेला लगता है , क्षेंमकरी माता का अन्य मंदिर बसंतपुर के पास पहाडी पर भी है , बसंतपुर एक प्राचीन स्थान है।
जिसका विशेष ऐतिहासिक महत्व है , सिरोही और मेवाड की सीमा पर स्थित यह कस्वा पर्वत मालाओ से आवृत्त है , और यहा राणा कुम्भा जी ने एक सुदृढ दुर्ग का निर्माण करवाया था , जिसके नाम से यह क३ स्वा बसंतपुर कहलाता है।
यहा के लोग इस माता के खींमज माता भी कहते है , इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 682 ( ई. सन् 625 ) में हुआ था , इस मंदिर का जीर्णोद्वार सिरोही के देवडा शासको द्वारा करवाया गया था , एक मंदिर भीलवाडा जिला राजसमंद में भी है , राजस्थान से बाहर गुजरात प्रांत के रूपनगर में भी है ,
चमत्कार की कथा श्री क्षेमकरी/खींवज माता :
जनश्रुतियों के अनुसार किसी समय उस क्षेत्र में उत्तमौजा नामक एक दैत्य रहता था। जो रात्री के समय बड़ा आतंक मचाता था।
राहगीरों को लूटने, मारने के साथ ही वह स्थानीय निवासियों के पशुओं को मार डालता, जलाशयों में मरे हुए मवेशी डालकर पानी दूषित कर देता, पेड़ पौधों को उखाड़ फैंकता, उसके आतंक से क्षेत्रवासी आतंकित थे।
उससे मुक्ति पाने हेतु क्षेत्र के निवासी ब्राह्मणों के साथ ऋषि गौतम के आश्रम में सहायता हेतु पहुंचे और उस दैत्य के आतंक से बचाने हेतु ऋषि गौतम से याचना की। ऋषि ने उनकी याचना, प्रार्थना पर सावित्री मंत्र से अग्नि प्रज्ज्वलित की, जिसमें से देवी क्षेमकरी प्रकट हुई।
ऋषि गौतम की प्रार्थना पर देवी ने क्षेत्रवासियों को उस दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाने हेतु पहाड़ को उखाड़कर उस दैत्य उत्तमौजा के ऊपर रख दिया। कहा जाता है कि उस दैत्य को वरदान मिला हुआ था वह कि किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। अतः देवी ने उसे पहाड़ के नीचे दबा दिया।
लेकिन क्षेत्रवासी इतने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें दैत्य की पहाड़ के नीचे से निकल आने आशंका थी, सो क्षेत्रवासियों ने देवी से प्रार्थना की कि वह उस पर्वत पर बैठ जाये जहाँ वर्तमान में देवी का मंदिर बना हुआ है तथा उस पहाड़ी के नीचे नीचे दैत्य दबा हुआ है।