श्री पाबूजी राठौड़ : गौ रक्षा का वचन निभाने अपनी शादी के फैरो को बिच में छोड़ रणभूमि में चले गए थे यह वीर
वैसे तो भारत की भूमि वीर गाथाओ से भरी पड़ी है पर कभी कभी इतिहास के पन्नो ने उन वीरो को सदा के लिए भुला दिया जिनका महत्व स्वय उस समय के शासक भी मानते थे और उन वीरो के नाम से थर थर कांपते थे।
आज अपने इस लेख में हम आपको उन्ही में से एक वीर पाबूजी राठौड़ की कहानी बतायेंगे जो आपने पहले शायद ही कही पढ़ी हो, वह वीर उस स्वाभिमानी और बलिदानी कौम के थे जिनकी वीरता के दुश्मन भी दीवाने थे |
जिनके जीते जी दुश्मन, राजपूत राज्यो की प्रजा को छु तक नही पाये, अपने रक्त से मातृभूमि को लाल करने वाले जिनके सिर कटने पर भी धड़ लड़ लड़ कर झुंझार हो गए | तो आईये जानते है इन्ही की सम्पूर्ण सच्ची कहानी…
पाबूजी राठौड़ ने फेरे लेते हुए ही सुना कि दस्यु एक अबला का पशुधन बलात हरण कर ले जा रहे है| यह सुनते ही वह आधे फेरों के बीच ही उठ खड़ा हुआ और तथा पशुधन की रक्षा करते हुए वीर-गति को प्राप्त हुआ| यों उस वीर ने आधे फेरे यहाँ व शेष स्वर्ग में पूरे किये |
फेरां सुणी पुकार जद, धाडी धन ले जाय | आधा फेरा इण धरा , आधा सुरगां खाय ||
पाबूजी राठौड़ की कथा :
पाबूजी राठौड़ ने चारण जाति की एक वृद्ध औरत से ‘केसर कालवी’ नामक घोड़ी इस शर्त पर ले आये थे कि जब भी उस वृद्धा पर संकट आएगा वे सब कुछ छोड़कर उसकी रक्षा करने के लिए आयेंगे|
चारणी ने पाबूजी राठौड़ को बताया कि जब भी मुझपर व मेरे पशुधन पर संकट आएगा तभी यह घोड़ी हिन् हिनाएगी| इसके हिन् हिनाते ही आप मेरे ऊपर संकट समझकर मेरी रक्षा के लिए आ जाना|
केशर घोङी सोवणी मोतिया जङी लगाम
कोलुमण्ड रा वीर पाबूजी ने झुक झुक करू प्रणाम
चारणी को उसकी रक्षा का वचन देने के बाद एक दिन पाबूजी राठौड़ अमरकोट के सोढा राणा सूरजमल के यहाँ ठहरे हुए थे| सोढ़ी राजकुमारी ने जब उस बांके वीर पाबूजी को देखा तो उसके मन में उनसे शादी करने की इच्छा उत्पन्न हुई तथा अपनी सहेलियों के माध्यम से उसने यह प्रस्ताव अपनी माँ के समक्ष रखा|
पाबूजी के समक्ष जब यह प्रस्ताव रखा गया तो उन्होंने राजकुमारी को जबाब भेजा कि ‘मेरा सिर तो बिका हुआ है, विधवा बनना है तो विवाह करना|’
लेकिन उस वीर ललना का प्रत्युतर था ‘जिसके शरीर पर रहने वाला सिर उसका खुद का नहीं, वह अमर है| उसकी पत्नी को विधवा नहीं बनना पड़ता| विधवा तो उसको बनना पड़ता है जो पति का साथ छोड़ देती है और शादी तय हो गई|
किन्तु जिस समय पाबूजी ने तीसरा फेरा लिया ,ठीक उसी समय केसर कालवी घोड़ी हिन् हिना उठी | चारणी पर संकट आ गया था| चारणी ने जींदराव खिंची को केसर कालवी घोड़ी देने से मना कर दिया था, इसी नाराजगी के कारण आज मौका देखकर उसने चारणी की गायों को घेर लिया था|
श्री पाबूजी राठौड़ महाराज की वीरता
संकट के संकेत (घोड़ी की हिन्-हिनाहट)को सुनते ही वीर पाबूजी राठौड़ विवाह के फेरों को बीच में ही छोड़कर गठ्जोड़े को काट कर चारणी को दिए वचन की रक्षा के लिए चारणी के संकट को दूर-दूर करने चल पड़े|
ब्राह्मण कहता ही रह गया कि अभी तीन ही फेरे हुए चौथा बाकी है ,पर कर्तव्य मार्ग के उस बटोही को तो केवल कर्तव्य की पुकार सुनाई दे रही थी| जिसे सुनकर वह चल दिया; सुहागरात की इंद्र धनुषीय शय्या के लोभ को ठोकर मार कर,रंगारंग के मादक अवसर पर निमंत्रण भरे इशारों की उपेक्षा कर,कंकंण डोरों को बिना खोले ही |
और वह चला गया -क्रोधित नारद की वीणा के तार की तरह झनझनाता हुआ, भागीरथ के हठ की तरह बल खाता हुआ, उत्तेजित भीष्म की प्रतिज्ञा के समान कठोर होकर केसर कालवी घोड़ी पर सवार होकर वह जिंदराव खिंची से जा भिड़ा,गायें छुडवाकर अपने वचन का पालन किया किन्तु वीर-गति को प्राप्त हुआ|
इधर सोढ़ी राजकुमारी भी हाथ में नारियल लेकर अपने स्वर्गस्थ पति के साथ शेष फेरे पूरे करने के लिए अग्नि स्नान करके स्वर्ग पलायन कर गई|
रजवट रो थुं सेवरो सब शुरा सिरमोङ
धरणी पर धाक पङे रगं श्री पाबूजी राठौड़
!!जय पाबुजी महाराज!!
लेखक : स्व.आयुवानसिंह शेखावत
FAQ’s
पाबूजी राठौड़ के पिताजी का क्या नाम था?
श्री पाबूजी राठौड़ के पिताजी का नाम धांधल देव राठौड़ था और माता का नाम कमलदे था।
पाबूजी राठौड़ की पत्नी का क्या नाम था?
पाबूजी राठौड़ का विवाह अमरकोट के निवासी सोढ़ा राणा सूरजमल की बेटी सुप्यारदे के साथ हुआ था, इतिहास में इन्हें सोढ़ी राजकुमारी के नाम से भी जाना जाता है।
पाबूजी राठौड़ किसके अवतार थे?
लोकथाओं और पाबूजी की फड़ के अनुसार पाबूजी राठौड़ को लक्ष्मण जी यानि शेषनाग के अवतार माने जाते है।
पाबूजी राठौड़ की घोड़ी का नाम क्या था?
पाबूजी राठौड़ की घोड़ी का नाम “केशर कालवी” था, जो उन्होंने एक गुर्जरी से उनकी रक्षा करने का वचन देने पर ली थी।
पाबूजी की फड़ क्या होती है?
पाबूजी की फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं।