बलवंत सिंह बाखासर 1971 युद्ध में जीत के महानायक जिन्होंने दुश्मन को धूल चटा दी थी
वैसे तो आज हम जिस विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं वह एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से संबंधित होने के कारण संभवतया आपने स्कूलों में इसके बारे में थोडा बहुत पढ़ा हो उनका नाम है बलवंत सिंह बाखासर।
किन्तु जब तक समय समय पर उनकी चर्चा न हो तो वक़्त की धूल की चादर उन घटनाओं को अपने आगोश में समेट लेती है और हम अपने स्वर्णिम इतहास को भूलने लगते हैं |
लेकिन इस ऐतिहासिक घटना के महानायक को जिस प्रकार हम आपसे परिचित कराने जा रहे हैं, वह जानकारी आपको इतिहास की किताबों में मिल पाए, ये लगभग नामुमकिन है |
दोस्तों ! आज हम जिस विषय को लेकर आपके समक्ष प्रस्तुत हैं वह है भारत-पाकिस्तान का युद्ध जो 1971 में बांग्लादेश को लेकर लड़ा गया था।
उसी युद्ध के दो महानायकों में से एक, जो पश्चिमी राजस्थान, उत्तरी गुजरात और पाकिस्तान के सिंह प्रान्त के बाहुबली और डकैत कहे जाने वाले और गरीबों व मज़लूमो के ‘रॉबिन हुड’ बलवंत सिंह बाखासर के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं |
बलवंत सिंह बाखासर का जन्म और आरंभिक जीवन :
राजस्थान के बाड़मेर जिले के बाखासर में चौहानों की नाडोला उप शाखा में हुआ| उनका नाम बलवंत सिंह चौहान था लेकिन राजपूतों में अपने गाँव का नाम भी अपने गौत्र के स्थान पर प्रयोग करने का चलन है इसी कारण वे बलवंत सिंह बाखासर के नाम से जाने जाते थे |
ठाकुर बाखासर का प्रारंभिक जीवन बाड़मेर, कच्छ (गुजरात) और पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में गुजरा| इसलिए आप इन क्षेत्रों के चप्पे चप्पे से भली-भांति परिचित थे| ठाकुर बलवंत सिंह का विवाह कच्छ (गुजरात) के विजेपासर गाँव में जाडेजा राजपूतों के ठिकाने में हुआ|
भारत की आज़ादी के उपरान्त बाड़मेर सीमा पर दोनों देशों की सीमा खुली हुई होने के कारण सिंध प्रान्त के मुसलमान भारत के बाड़मेर व अन्य सीमान्त इलाकों में आकर लूट-मार किया करते थे इसी के कारण बलवंत सिंह से यौवन की दहलीज़ पर कदम रखने के साथ ही हाथ में बन्दूक थाम ली थी |
बाखासर बलवंत सिंह सांचोर मेले को भय से मुक्त रखने के लिए अपने ऊंट पर बैठ कर पहरा दिया करते थे, बाड़मेर सांचोर और उत्तरी गुजरात, कच्छ और रण क्षेत्र में आज भी लोग बलवंत सिंह बाखासर की वीरता और अन्य गुणों का बखान करते हुए अनेक गीत और भजन गाते हैं।
आधुनिक रॉबिन हुड थे Balwant Singh Bakhasar :
60 से 70 तक के दशक में पश्चिमी राजस्थान में बलवंत सिंह बाखासर एक कुख्यात डकैत के रूप में चर्चित थे | उन पर लूट और हत्या सहित अनेक केस दर्ज थे |
उस दौर में सिंध के मुस्लिम लुटेरों का आतंक व्याप्त था वहीँ दूसरी ओर बलवंत सिंह बाखासर इन लुटेरों और सरकारी खजानों से माल लूट कर सारा धन बाड़मेर, गुजरात और सिंध प्रान्त के गरीब और बेसहारा लोगों में बाँट दिया करते थे और ग्रामीणों की हर संभव मदद को सदा तैयार रहते थे।
जिसके चलते सांचोर (बाड़मेर), उत्तरी गुजरात के वाव थराद एवं बॉर्डर पर बसे गाँव वालों की नज़रों में वे रॉबिन हुड या किसी मसीहा से कम नहीं थे| बलवंत सिंह जब भी किसी गाँव में रुकते तो गाँव के निवासी ही उनके लिए सभी प्रबंध करते थे और वक़्त के साथ बलवंत का नाम मशहूर होता गया | सिंध के लुटेरे बलवंत सिंह बाखासर के नाम से ही कांपने लगे थे| तत्कालीन प्रशासन भी उनसे हमेशा खौफ़ खाने लगा था|
ठाकुर बलवंत सिंह बाखासर जी की रिपोर्ट पर बना यह वीडियो जरूर देखे
गौ वंश की रक्षा कर हुए चर्चित बलवंत सिंह बाखासर :
एक बार बलवंत सिंह को यह ख़बर मिली कि मीठी पाकिस्तान के सिन्धी मुस्लिम लुटेरे 100 से अधिक गायों को यहाँ से सिंध ले जा रहे हैं | सूचना मिलने के साथ ही बलवंत सिंह बाखासर अपने घोड़े पर सवार होकर बिजली की गति से लुटेरों के पास जा पहुंचे और अकेले ही 8 लुटेरों को मौत की नींद सुला दिया|
उनके रौद्र रूप को देख कर बाकी बचे लुटेरे गायों को छोड़कर भाग खड़े हुए और बलवंत सिंह अकेले ही सभी गायों को मुक्त कराकर वापस ले आये |
कुख्यात लुटेरों का काल बने बलवंत बाखासर :
चौहटन (बाड़मेर) का मो. हुसैन एक लुटेरा था जिस पर स्मगलिंग के भी संगीन इलज़ाम थे, इसे बलवंत सिंह बाखासर ने मार गिराया और ऐसे ही मो. हयात खान नाम के लुटेरे को भी बाखासर से काल के गाल में पहुंचा दिया था |
3 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तान के हमले के साथ हुई युद्ध की शुरुआत :
भारत के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध आरम्भ से ही तनावपूर्ण रहे है पाक 1965 की हार से तिलमिलाया बैठा था और उसने 3 दिसम्बर को एक बार फिर भारत पर हमला कर दिया|
जवाबी कार्रवाई करने के लिए 10 पैरा बटालियन को आवश्यकता थी एक ऐसे आदमी की जो बाड़मेर के रेगिस्तान और पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के छाछरो तक के चप्पे चप्पे से परिचित हो और बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह की तलाश आकर पूरी हुई बलवंत सिंह बाखासर|
जयपुर महाराजा भवानी सिंह ने देश हित के लिए बाखासर से मांगी मदद :
लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह को ज्ञात हुआ कि बलवंत सिंह बाखासर अकेला ऐसा शख्स है जो सेना के लिए सहायक हो सकता है |
भवानी सिंह ने बाखासर से देश रक्षा के लिए मदद मांगी और कहा कि आप की सहायता भारत के सेना रेगिस्तानी भूल भुलैया में ही फंस कर रह जायेगी केवल तुम ही एक ऐसे व्यक्ति हो जो इस समय मेरी मदद करके भारत की जीत सुनिश्चित कर सकते हो और बलवंत सिंह ने हामी भर दी।
रॉबिनहुड बलवंत बाखासर बने गाइड गुप्त रास्तों से सेना को छाछरो पहुँचाया :
बाखासर ने भारत की सेना को गुप्त रास्तों से बड़ी ही ख़ामोशी के साथ 7 दिसम्बर को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के तहसील मुख्यालय छाछरो पहुँचाया दिया जहाँ पर पाक रेंजर्स का मुख्यालय था |
बलवंत सिंह बाखासर बड़ी चतुराई से भारत की सेना को रण क्षेत्र के रास्ते वहाँ लाये जिससे पाक रेंजर्स धोखा खा गए और ये समझ बैठे कि हमारी सेना मदद के लिए आ पहुंची है |
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पाक रेंजर्स के संभलने से पहले किया भारत ने छाछरो पर कब्ज़ा :
इससे पहले किपाक सेना के रेंजर्स ये समझ पाते कि ये पाकिस्तान की सेना है या नहीं, उससे पहले ही लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह के नेतृत्व में 10 पैरा स्पेशल बटालियन ने पाक रेंजर्स को संभलने का मौका दिये बगैर अंधाधुंध धावा बोल दिया।
जिसमे अनेक पाक सैनिक मारे गए और शेष पोस्ट छोड़ कर भाग खड़े हुए और 7 दिसम्बर, 1971 सुबह 3 बजे ही छाछरो पर भारत का कब्ज़ा हो गया|
पाकिस्तानी तोपखाने को दिया चकमा, जीपों के हटाये साइलेंसर :
भारत की सेना छाछरो पर कब्ज़ा करके ही नहीं रुकी, वह आगे बढ़ी मगर सामने पाकिस्तान का तोपखाना था और भारत की सेना का आगे बढ़ना संभव नहीं था|
लेफ्टिनेट कर्नल भवानी सिंह ने बाखासर पर विश्वास जताया और उन्होंने बलवंत सिंह बाखासर को सेना की एक बटालियन और 4 जोंगा जीपें भी सौंप दी |
बलवंत सिंह बाखासर यहाँ सेना की अगुवाई कर रहे थे उन्होंने और भवानी सिंह ने मिलकर एक योजना बनाई और जोंगा जीपों के साइलेंसर हटा दिए जिससे रात के अँधेरे में पाक सेना को भ्रम हुआ कि भारत की टैंक रेजिमेंट ने हमला बोल दिया है और जोंगा में लगी MMG और LMG से ही पाकिस्तान तोपखाने को तहस नहस कर दिया|
भारतीय सेना ने लगभग 17 पाक सैनिकों को बंदी बना लिया था और उनसे भारी मात्र में अस्ला-बारूद अपने कब्जे में लिया|
छाछरो व अमरकोट सहित 3600 वर्ग किमी. पर किया भारत ने कब्ज़ा :
हिन्दुस्तान की सेना ने 7 दिसम्बर, 1971 से 10 दिसम्बर, 71 तक 4 दिन में ही सिंध प्रान्त के छाछरो व अमरकोट सहित 3600 वर्ग किमी।
इलाके पर अपना कब्ज़ा जमा लिया और वापस बाड़मेर लौट आई इस दौरान सिंध प्रांत में बलवंत सिंह बाखासर की लोकप्रियता देख कर भारतीय सेना दंग रह गई क्योंकि बाखासर को देखने के लिये पाक के सुदूर हिस्सों से ग्रामीण कई किमी. पैदल चल कर आये थे |
भारत सरकार ने बाखासर के खिलाफ़ चल रहे सभी केस किये खत्म :
भारतीय सरकार ने Balwant Singh Bakhasar की देशभक्ति की भावना और सेना की उनके द्वारा की गई सहायता के लिए आभार जताते हुए उनके खिलाफ चल रहे सभी केसों को खत्म कर दिया था और दो हथियारों के लिए आल इंडिया लाइसेंस भी दिया था|